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सहदरी के चौके पर आज फिर साफ - सुथरी जाजम बिछी थी। टूटी - फूटी खपरैल की झिर्रियों में से धूप के आडे - तिरछे कतले पूरे दालान में बिखरे हुए थे। मोहल्ले टोले की औरतें खामोश और सहमी हुई - सी बैठी हुई थीं; जैसे कोई बडी वारदात होने वाली हो। मांओं ने बच्चे छाती से लगा त्रिये थे। कभी - कभी कोई मुनहननी - सा चरचरम बच्चा रसद की कमी की दुहाई देकर चिल्ला उठता। "नांय - नायं मेरे लाल!" दुबली - पतली मां से अपने घुटने पर लिटाकर यों हिलाती, जैसे धान - मिले चावल सूप में फटक रही हो और बच्चा हुंकारे भर कर खामोश हो जाता। आज कितनी आस भरी निगाहें कुबरा की मां के मुतफक्किर चेहरे को तक रही थीं। छोटे अर्ज की टूल के दो पाट तो जोड लिये गये, मगर अभी सफेद गजी क़ा निशान ब्योंतने की किसी की हिम्मत न पडती थी। काट - छाँट के मामले में कुबरा की माँ का मरतबा बहुत ऊँचा था। उनके सूखे-सूखे हाथों ने न जाने कितने जहेज सँवारे थे, कितने छठी-छूछक तैयार किये थे और कितने ही कफन ब्योंते थे।
Listening Duration | 7 Minutes and 7 Seconds |
Author | Ismat Chughtai |
Source or Publisher | Hindipdfbook.Com |
Language | Hindi |
Category | Upanyas, Novel, Stories |